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सूखे पत्ते

SAITUNIK
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पतझड़ के मौसम में रास्ते में बिखरे इन सूखे पत्तों को देखकर एक अजीब सा एहसास होता है ये जीवन भी तो सूखे पत्ते की तरह है पत्ता जब पेड़ पर नई नई खिली धूप में अंगड़ाई लेते हुए टहनी पर झूलता है तो सुबह सुबह की ओस उस पत्ते की चमक और खूबसूरती को और बढ़ा देती है यह ओस पत्ते पर ऐसी चमकती है जैसे खूबसूरत किशोरी के मुख पर नई आती जवानी की झलक . किशोर से जवान होने का सफर कितना नाजुक है परन्तु खूबसूरत भी . हर दिन नया दिन हर समय दिल में एक नई उमंग एक नई तरंग मन तो जैसे नदी की उठती लहरों में हिचकोले खता रहता है .आगे क्या होगा ? भविष्य कैसा होगा इन परेशानियों से दूर हर लम्हे को जीने की ख्वाहिश . हर समय यार दोस्तों का साथ . हर सुख और दुःख बस यारों के साथ ही बांटना यारियां ही सच्ची लगती है परन्तु समय का पहिया किसी के लिए नहीं रुकता . किशोर पत्ते की तरह जीवन की धुल में सनकर आदमी और जवान आदमी से बूढा व्यक्ति बन जाता है न वो उमंग रहती है न वो यारियां . बस पेड़ के उस सूखे पत्ते की तरह गिरने का इंतज़ार करता है . सूखा पत्ता प्रतिबिम्ब है इस जीवन चक्र का जिसमे हम सभी फंसे हैं . यह तो कुदरत का नियम है जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है . मृत्यु एक भयानक एहसास . इस से कोई भी न बचा है जब मृत्यु समय से पहले आती है तो परिवार को बिखेर कर चली जाती है परन्तु जब मृत्यु का इंतज़ार करते करते एक वृद्ध उस समय सीमा को लांघ जाता है तो वह भी असहनीय होता है इसलिए तो कहा जाता है हर काम समय आने पर अच्छा लगता है . समय से पहले या समय के बाद मिली चीजों की जीवन में अहमियत काम हो जाती है .
लेखिका – मीता गोयल

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