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जिम्मेदारी

SAITUNIK
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श्याम एक मेहनती आदमी था वह अपने जीवन में खुशियों के रंग भरना चाहता था वह अविवाहित था जवान , सांवला ,हृष्ट पुष्ट था परन्तु केवल मेट्रिक पास था यहाँ वहां मेहनत कर दिन भर में केवल दो तीन सौ रूपए ही कमा पाता था उसकी आँखों में ढेर सारे सपने छिपे थे अनाथ होने के कारण उसे अपना बोझ स्वयं ही उठाना पड़ता था उसकी अधूरी पढ़ाई का यह भी एक कारण था हंसमुख और ईमानदार होने के कारण आसपास के लोग उसका सम्मान करते उसे अपनी पलकों पर बिठाते थे ईमानदार होने के कारण उसे काम आसानी से मिल जाता था एक दिन उसके पड़ोस में राधा रहने को आई राधा एक सीधी सादी और सुन्दर लड़की थी उसके नयन नक्श सुन्दर और रंग गेहुंआ था श्याम उसे देखते ही अपना दिल दे बैठा राधा भी चोरी छिपे श्याम को देखती थी दोनों जवान दिलों में अलग सी रवानगी थी धीरे धीरे यह रवानगी एक जूनून में बदल गयी वे दोनों समझ गए थे कि वे प्यार की वादियो में हैं केवल इजहार करने की देर है एक दिन हिम्मत कर श्याम ने अपने दिल की बात राधा से कही राधा का दिल जोर जोर से धड़कने लगा हिम्मत कर उसने अपनी पलकें झुकाकर इशारों में हामी भरी उसके कान गाल सभी लाल हो गए थे श्याम की खुशी का ठिकाना न रहा वह राधा के माता पिता के पास उसका हाथ मांगने गया राधा के माता पिता पहले से ही श्याम के हंसमुख स्वाभाव और ईमानदारी से अवगत थे उन्होंने इस रिश्ते के लिए हाँ करके श्याम के जीवन में इंद्रधनुषी रंग बिखेर दिए थे
राधा और श्याम जैसे एक दूसरे के लिए बने थे एक दूसरे में अपने आपको समर्पित करते हुए वे अपनी शादी शुदा जीवन में खो गए विवाह के कुछ दिन ऐसे ही बीत गए राधा माँ बनाने वाली थी घर की जिम्मेदारियां बढ़ने लगीं परन्तु आमदनी वहीं की वहीं राधा ग्रहणी थी सारा बोझ श्याम के कन्धों पर था वह पहले से ज्यादा मेहनत करने लगा दो तीन सौ के बजाय पांच सौ कमाने लगा महंगाई की मार ने उसकी कमर तोइ दी अस्पताल के खर्चे नए आने वाले मेहमान की जरूरतें सोच सोच कर ही उसका दिल घबराने लगा इस हालत में वह राधा को भी काम करने की इजाजत नहीं दे सकता था परेशानी की हालत में उसने सोचा क्यों न मैं कार चलना सीख लूँ और कहीं ड्राइवर की नौकरी कर लूँ अपने दोस्त की मदद से उसने कार चलना सीखा और एक अमीर परिवार में ड्राइवर की नौकरी कर ली जहाँ उसे अच्छी खासी तनख्वाह मिलाने लगी उसे लगा वह अपके नी जिम्मेदारियां उठा लेगा जल्द ही वह एक सुन्दर बालक का पि सुन्दर ता बन गया जब तक बच्चा छोटा था दिन आसानी से काट गए परन्तु बच्चे के पांच साल के होने पर स्कूल की चिंता उसे सताने लगी सभी स्कूलों की फीस इतनी ज्यादा थी कि अगर वह फीस देता तो घर खर्च पर असर आता फिर एक और जिम्मेदारी श्याम के कंधो पर आ गयी दिन रात इसी परेशानियों से जूझते हुए उसे अहसास होने लगा की गृहस्थी की गाड़ी एक पहिए पर नहीं टिक सकती हर हाल में दूसरे पहिए को भी जोर लगाना पड़ेगा तात्पर्य राधा को भी घर से बाहर निकल काम करना होगा जिससे जिम्मेदारी एक कन्धों पर न रहकर बराबर बराबर दो आदमियों में बँट जाए
श्याम ने सुबह तड़के उठाते की राधा से इस बारे में बात की राधा पहले तो सकुचाई फिर धीरे से बोली परन्तु मैं क्या काम करूंगी श्याम भी सोच में पड़ गया सहसा उसे याद आया की राधा बहुत सुन्दर कढ़ाई करती है उसने राधा से कहा – क्यों न तुम अपना यह हुनर लोगों तक पहुँचाओ इस काम में मैं तुम्हारी मदद करूंगा मैं अपनी मालकिन से कहूँगा उनकी बहुत सी सहेलियां हैं कोई न कोई जरूर तुम्हारे इस हुनर को पसंद करेगा और इस तरह श्याम ने राधा का हुनर अपनी मालकिन को दिखाया इतनी सुन्दर कढ़ाई का काम देखकर मालकिन बहुत खुश हुई तुरंत अपनी एक चादर कढ़ाई करने के लिए दी और साथ में हजार रूपए भी श्याम खुशी खुशी घर गया घर पहुंचते ही उसने राधा को प्यार से चूमा साथ ही उसकी पहली कमाई भी दी इस तरह श्याम ने जीवन में आई हर जिम्मेदारी को अपने सयानेपन से पूरा किया और खुशी खुशी अपने परिवार के साथ रहने लगा
लेखिका – मीता गोयल

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