SAITUNIK
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सरहद पर बैठा वह जवान वीर
मन में उसके कैसी उठती है ये पीर
प्रेमिका की याद में निकलते हैं ये नीर
प्यास दिल गुनगुनाता है सुन्दर गीत
इंतजार कर रहा है कहीं उसका मीत
याद आती है उस संगिनी की प्रीत
अब न रखा जाता है उससे धीर
कहीं न बिछड़ जाए उससे उसका मीत
प्यार के वादियों में मन जाता है भीग
बरसों से चली आ रही है ये रीत
सावन की ये बेला न जाए बीत
भीग न जाए उसके बिना उसका मीत
राधा के बिना मुरारी की अधूरी है प्रीत
होंठों पर आए फिर वे मधुर गीत
सोच रहा सरहद पर बैठा वह जवान वीर
कहीं न बिछड़ जाए उससे उसका मीत
कवयित्री – मीता गोयल
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