SAITUNIK
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कहाँ जाती हैं ये राहें
क्या कहती हैं ये राहें
राहें जो जोड़ती हैं हमें
राहें जो खोजती हैं हमें
टेढ़ी मेढ़ी हों या हों ऊबड़ खाबड़
सुनसान हों या हो भरी भरी
राहें गोल हों या हों घुमावदार
राहें जो फ़ैली हैं गली गली
जोड़ती हैं ये शहरों को गाँवों से
गाँवों को शहरों और जंगलों से
राहें भेजती हैं हमें सभी जगह
राहें कुछ कहती हैं हर समय
राहें जुड़कर ही बनते हैं प्रदेश
राहें बुनकर ही बनते हैं देश
हमारे अपनों से और परायों से
ये राहें ही हमें मिलाती हैं
राहें न हो तो मुश्किल हो जीना
पथरीले रास्तों पर चलना और बढ़ना
कहाँ जाती हैं और क्या कहती हैं ये राहें
राहें जो जोड़ती और खोजती हैं हमें
राहें ले जाती हैं हमें यहाँ वहाँ
राहें ले जाती हैं हमें कहाँ कहाँ
कवयित्री – मीता गोयल
meetagoel.in
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