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कारवां है सपनों का,
आशियाना है अपनों का,
ये प्यार भरा घरोंदा मुझे जान से भी प्यारा,
घर की इस चौखट को है नमन हमारा।
बच्ची का माँ से रूठना,
बचपन का ये रूठना रिझाना,
घर की बगिया का महकना,
नन्ही कलियों का ये नखरा,
यही है कारवाँ सपनों का,
यही तो है आशियाना अपनों का।
भोर हुई सूरज की किरणों ने धोया है,
आँगन चौबारा हर कोना घर का,
बच्चा बड़ा और हर एक बूढ़ा,
मजा ले रहा है जीवन का,
प्रकृति ने अंगड़ाई ली है,
यौवन की अरुणिमा भी जागी है,
खो गया अंगड़ाई लेते इस यौवन में,
पिताजी का ये अखबार प्यारा।
दादी ने है खीर बनाई,
माँ ने भी उसमें खुशियाँ हैं मिलाई,
रुनझुन रुनझुन करती मेरी बहनिया,
चुप – चुप चुप – चुप रहती मेरी बहनिया,
चाची की पुकार और चाचा की भारी आवाज,
फ़ैल रही है हवाओं में ये प्यार भरी फुहार,
घुल रही है फिज़ाओं में अपनेपन की मिठास,
इसीलिए तो कहती हूँ कि
यही है कारवाँ सपनों का।
यही तो है आशियाना अपनों का।
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